सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

चैतन्य उपनिषद की शब्दावली

अक्सर अध्यात्म में भाषा और शब्दों की बहुत खिचड़ी बन जाती है जिससे साधक और गुरुओं के बीच सेतु नहीं बन पता और अर्थ का अनर्थ  हो जाता है।  फिर साधक की साधना का कोई फल नहीं आता और उसका समय नष्ट होता है। मेरे अनुसार ज्ञानमार्ग में प्रगति करने के लिए भाषागत शुद्धि बहुत आवश्यक है क्योंकि इस  मार्ग में बुद्धि का उपयोग बुद्ध होने के लिए करना होता है।  बुद्धि का ये गुण  होता है कि वो शुद्ध भाषा और सही शब्दों के उपयोग से बहुत जल्दी अज्ञान को समझने लगती है जिस कारण प्रगति  बहुत तेज गति से होने लगती है। इसलिए ज्ञानमार्ग पर भाषा ठीक करने पर बहुत ज़ोर दिया जाता है।

  

यहाँ पर जो बताया जा रहा है उसे अच्छे से सोख लेने के लिए मेरी शब्दावली ही प्रयोग करने का मैं सुझाव देता हूँ जिससे फायदा ये होगा कि यदि आपका कोई प्रश्न होगा तो हम दोनों पक्ष आपस मैं सही से जुड़ पाएंगे उस प्रश्न  के उत्तर को प्राप्त करने के लिए। हो सकता है कि पहले आपने इन शब्दों से मिलते जुलते शब्द कहीं और  सुने या  पढ़े होंगे।इस उपनिषद को समझने के लिए निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करना पड़ेगा।


ज्ञानमार्ग के शब्द

प्रचलित समानार्थी शब्द

अस्तित्व

सृष्टिवुजूद

अनुभवकर्ता

द्रष्टा , पुरुष, चैतन्य, आत्मन

अनुभव

दृश्य,महसूस करने की योग्यतातजरबा

अनुभवक्रिया

दृष्टि, समाधी , एकता , शून्यता

चित्त

मन, शक्तिदेवीप्रकृतिमाया

नाद

ऊर्जा, स्पंदन, कंपन्न, परिवर्तन

चित्त की पर्तें

चक्र, कोश

चेतना

साक्षीभावबोध, होश, जागरण

बुद्धि

प्रज्ञा, विवेक

ध्यान

एकाग्रता

 

धन्यवाद !
























1 टिप्पणी:

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