रविवार, 20 फ़रवरी 2022

अध्यात्म

अध्यात्म क्या है ?

किसी भी साधक की साधना की शुरुआत इस प्रश्न के साथ ही  होनी चाहिए कि अध्यात्म क्या है? साधक को अध्यात्म की परिभाषा पता होना आवशयक है। दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांश साधकों को ये नहीं पता कि अध्यात्म कहते किसे हैं। अकसर देखा यह गया है कि साधक इधर-उधर भटकते रहते हैं कभी इस गुरु के पास कभी उस गुरु के पास तो कभी यूट्यूब तो कभी ढोंगी साधू-माहत्मा के पास समय बर्बाद करते हैं लेकिन ये जानने की कभी कोशिश ही नहीं करते कि अध्यात्म है क्या ? बहुत कम लोग इस प्रश्न के साथ चल सकने हिम्मत करते हैं और सौभग्य से यही वे लोग हैं जो अध्यात्म में बहुत दूर तक जाते हैं और सफल होते हैं।


मूल रूप से अध्यात्म स्वयं के बारे में है, स्वयं का अध्ययन है, आत्म दर्शन है।स्वयं के तत्व को जानना उसका अध्ययन करना, उसे समझना, ये अध्यात्म की सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण परिभाषा है। इसके अलावा आप कह सकते हैं कि अस्तित्व के मूल तत्व का अध्ययन करना भी अध्यात्म है।


अध्यात्म क्यों आवश्यक है


ये जगत क्या है ? ये जीव क्या है ? ये मनुष्य क्या है? इसका मूल तत्व क्या है ? इसका सत्य क्या है ? ये भी अध्यात्म के अंतर्गत ही आता है। अध्यात्म एक जीवन शैली भी है। कैसी जीवन शैली ? जब आपको सत्य का ज्ञान हो जाये, चेतना जागृत हो जाये तो इस सत्य में और चेतना में प्रकाशित जीवन शैली अध्यात्मिक जीवनशैली है।अध्यात्मिक ज्ञान होने पर जीवन पूरी तरह परिवर्तित हो जाता है और जीवन जीने में एक रस आ जाता है फिर पहली बार वास्तविक प्रेम के दर्शन होते हैं।


अध्यात्म क्या नहीं है ?


अध्यात्म क्या है ये तो ऊपर जान लिया गया है। अब ये भी जान लेना ज़रूरी है कि अध्यात्म क्या नहीं है। इस तरह हर पहलु से अध्यात्म का अर्थ निकल कर आएगा और अध्यात्म की समझ पक्की हो जाएगी। अध्यात्मिक अज्ञान का प्रारम्भ बचपन से ही हो जाता है, जब बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है और माँ-बाप उसे कुछ कुछ बाते उनके सम्प्रदाय के हिसाब से बताते रहते हैं। जैसे सुबह उठकर सबसे पहले बड़े लोगो को प्रणाम करना, सुबह-शाम पूजा करना, मंदिर के सामने हाथ जोड़ना अगर मुस्लिम हैं तो नामज-क़ुरान पड़ना, त्यौहार मानना, व्रत लेना, जानवरों की बलि देना आदि। इस तरह बच्चे को लगने लग जाता है की ये सब अध्यात्म है और वो ऐसे ही बड़ा होकर ये सब करता रहता है जबतक कि उसे कोई दिशा दिखाने वाला नहीं मिल जाता। बड़े होने पर तो और भी मान्यताएं जुड़ने लगती हैं जैसे सिद्धियों का लालच, योग आसन करना, गरीबों की मदद करना, पुण्य कमाने का लालच और मंदिर बनवाना भी उसे अध्यात्म लगने लगता है।

जो व्यक्ति अधिक इधर-उधर भटकता है, उसे उतना ही कम ज्ञान होता है।- लाओत्सु 


बहुत सारे लोग अध्यात्म और सम्प्रदाय को एक ही मानते हैं। इस समाज में करीब ९० प्रतिशत साम्प्रदायिक लोग उपरोक्त क्रिया-कलापों को ही अध्यात्म समझते हैं जोकि अध्यात्म की दृष्टि से एक बहुत बड़ी भूल है जिसे अज्ञान भी बोल सकते हैं, और ये सब ढोंग और पाखंड अध्यात्म नहीं हैं। इनमे से कुछ चीज़ें अध्यात्मिक मार्ग के लिए सहायक हो सकती हैं लेकिन अध्यात्म फिर भी नहीं हैं । कुछ लोग बहुत समझदार होते हैं वे बचपन से ही बहुत सजग होते हैं वे लोग इन मूर्खताओं में नहीं फसते हैं और इससे बहार आने का मार्ग खोज ही लेते हैं। ऐसे ही लोग अध्यात्मिक साधक होते हैं और बहुत प्रगति करते हैं और आगे चलकर दूसरों को भी अध्यात्मिक मार्ग में लाने का प्रयास करते हैं।


आशा है कि आप लोग इस अध्यात्मिक यात्रा में मेरे साथ जुड़े रहेंगे। मैं गुरुक्षेत्र से प्रार्थना करता हूँ कि मैं अपनी बातों को आसान शब्दों के माध्यम से सभी साधकों तक पहुँचा पाऊँ, जिससे उनका अध्यात्मिक विकास तेजी से हो।



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